Description
कविताओं में भाव अलग अलग हैं किन्तु भाषा सम्बन्धी एक समानता भी है। सभी कविताएं क्लासिकी हिन्दी में बिना उर्दू के शब्द प्रयोग के लिखी गयी हैं, हिन्दी अपने आप में बहुत सशक्त भाषा है और मैं वास्तव में यह समझने में अक्षम हूॅं कि क्यूॅं हम परिमार्जित हिन्दी में अपनी कविताएं नहीं लिख पाते हैं! हिन्दी पर मेरी अपनी जो भी पकड़ है, मैं उस पर गौरवान्वित हूॅं और उस गौरव की छाप मैंने इन कविताओं पर छोड़ने का प्रयत्न किया है। पुरूष होने के नाते मैं पुरूष रसायन को सम्भवतः बेहतर समझता हूॅं किन्तु कुछ कविताओं में मैंने स्त्री मन को छूने का भी प्रयास किया है, कितना सफल हो सका यह कोई पाठक ही बता पाएगा। – मुहम्मद अहसन
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