Description
‘जीवन भर वह अपने पापा के नक्शे कदमों पर ही चलने का प्रयास करता रहा । उसका मानना है कि बच्चों को बचपन में खूब प्यार मिलना चाहिए। अनुशासित करने के नाम पर बच्चों को मारना, डांटना फटकारना गलत है । अरे भई पौधे को ठीक से उगने तो दो, कांट-छांट के लिए बाद में बहुत वक्त मिलेगा ।‘ ‘उन दिनों बच्चे पास थे तो पैसे की हमेशा तंगी बनी रहती थी, दोनों नौकरी पर जाते थे सो समय भी कम होता था । आज पैसा है, समय है तो बच्चे दूर चले गए हैं । साल-साल हो जाता है उनको देखे हुए ! ईश्वर भी एक चीज देता है तो दूसरी ले लेता है ।‘ ‘जीवन पथ‘ कभी कल्पना लोक में और कभी उसके बाहर निकल कर वास्तविकता के धरातल पर लेखक द्वारा जीवन को समझने का प्रयास मात्र है ।
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